हमारे पुजारियों से मिलें!
पूर्व पुजारी
स्व.श्री भीम दत्त नौटियाल जी
ग्राम गाफर
सिद्धपीठ गाफर नागराजा
पूर्व पुजारी
स्व.श्री जयराम नौटियाल जी
ग्राम गाफर
सिद्धपीठ गाफर नागराजा
पूर्व पुजारी
स्व.श्री गोकुल देव नौटियाल जी
ग्राम लवाणी
कार्यकाल (1954 - 1979)
पूर्व पुजारी
स्व.श्री महेश्वर दत्त नौटियाल जी
ग्राम गाफर
2 वर्ष व्यवस्थापक पुजारी
पूर्व पुजारी
आचार्य स्व.श्री सूर्यमणि नौटियाल जी
ग्राम लवाणी
कार्यकाल (1979 - 2014)
पूर्व पुजारी
स्व.श्री कमलनयन नौटियाल जी
ग्राम लवाणी
कार्यकाल (2016 - 2021)
वर्तमान पुजारी
श्री जीतमणि नौटियाल
ग्राम गाफर
कार्यकाल प्रारंभ 2021 से
सहायक पुजारी
श्री आशीष नौटियाल
ग्राम लवाणी
सिद्धपीठ गाफर नागराजा
महाभारत के आस्तिक पर्व के अनुसार, नागों की उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है
कद्रू से 1000 सर्प पुत्र उत्पन्न हुए, जबकि विनता से दो तेजस्वी पुत्रों का जन्म हुआ—गरुड़ और अरुण। गरुड़ पक्षियों के राजा माने जाते हैं, और अरुण भगवान सूर्य के सारथी हैं।मुख्य-मुख्य नागों के नामों में सबसे पहले शेष जी प्रकट हुए, तदनंतर वासुकि नाग, ऐरावत, तक्षक, कटेटिक, धनंजय, कालिया, मणीनाग, अपूरण, पिज्जरक, एलापत्र, वामन, नील, अनील, कलमाष, शबल, आर्यक, उग्रक, कलशपोतक, सुमनाख्य, दधीमुख, विमल, पिण्डक, आप्त, कारकोटिका, द्वितीय, शंख, वालिशिख, निष्टानक, टेमगुह, नहुष, पिण्डल, वाय्हाकर्ण, हस्तिपद, मुदगर, कंबल, अश्वतर, कालियक, वृतम आदि प्रमुख नाग माने जाते हैं।
आइए, सिद्धपीठ गाफर नागराज जी के बारे में जानते हैं।
भगवान नागराज जी का प्रसिद्ध मंदिर टिहरी गढ़वाल के थौलधार ब्लॉक के एक छोटे से गांव, ग्राम गाफर, में स्थित है। वर्तमान में श्री जीतमणि नौटियाल जी भगवान नागराज जी के पुजारी हैं।
यह मंदिर सोसाइटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1860 ई. के अंतर्गत सम्यक रूप से पंजीकृत गाफर नागराज मंदिर विकास समिति (रजि.) द्वारा संचालित है। समिति में निम्नलिखित पदाधिकारी सर्वसम्मति से चुने गए हैं:
- अध्यक्ष: श्री शूरबीर कृति सिंह पंवार
- वरिष्ठ उपाध्यक्ष: श्री राजपाल सिंह कुमाई
- उपाध्यक्ष: श्री जयेंद्र प्रसाद नौटियाल
- महासचिव: श्री किशोरीलाल नौटियाल
- सचिव: श्री शिवशरण नौटियाल
- कोषाध्यक्ष: श्री राम प्रसाद सेमवाल
- उप कोषाध्यक्ष: श्री मनोज सिंह सेनवाल
- फाइनेंस कोऑर्डिनेटर: श्रीमती ममता रतूड़ी (पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य, बंस्यूल, विकास खंड थौलधार, टिहरी गढ़वाल)
- सहायक फाइनेंस कोऑर्डिनेटर: श्री कृपाल सिंह पंवार
कार्यकारिणी सदस्य:
- श्री ईश्वर सिंह बयाड़ा
- श्री बचन सिंह सेनवाल
- श्री भूरिया सिंह पंवार (भूतपूर्व प्रधान, ग्राम सभा लवाणी)
- श्री रामचंद्र सिंह रांगड़
यह समिति 11 जून 2023 को ग्राम गाफर में आयोजित आम सभा में सर्वसम्मति से चुनी गई। नव निर्वाचित समिति से यह आशा की जाती है कि वह मंदिर के हित में समुचित और सुव्यवस्थित कार्य करेगी।यह मंदिर कंडीसौड़ से लगभग 25 किलोमीटर ऊपर पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है और अपनी दिव्यता व प्राचीनता के लिए प्रसिद्ध है।कहा जाता है कि भगवान नागराज जी ग्राम गाफर में लगभग 200 से 300वर्षों से विराजमान हैं। हाल ही में सभी क्षेत्रवासियों द्वारा मंदिर को नवनिर्मित रूप से तैयार किया गया है।
जातक कथाओं के अनुसार-: 18वीं सदी में गोर्खा आक्रमण और भुखमरी के चलते लोगों ने पलायन करना शुरू कर दिया था, जिसके कारण कुछ नौटियाल परिवार गाफर आए थे, जबकि कुछ अन्य स्थानों पर चले गए थे। जब नौटियाल परिवार के लोग वहां से यहां आ रहे थे, तो उन्होंने रघुबीर देवता से आशीर्वाद लिया और अपने साथ एक मूर्ति या शिवलिंग ले आए। रघुबीर देवता उनके साथ आए थे। यह भी कहा जाता है कि जहां से नौटियाल परिवार गाफर आए थे, वहां भगवान नागराज जी को रघुबीर के नाम से पूजा जाता था और वहां नागराज जी का कोई वर्णन नहीं था। लेकिन जब भगवान नागराज जी यहां प्रकट हुए, तो उन्होंने स्वयं को भगवान नागराजा के रूप में प्रस्तुत किया। तब से उन्हें भगवान नागराजा के रूप में पूजा जाने लगा, और गाफर गांव में आज भी उनकी पूजा की जाती है।
बहुत पहले भगवान नागराज जी अपनी दिव्य शक्तियों के द्वारा उत्तरकाशी जिले की (बनावा पट्टी) से आए थे। यात्रा के दौरान उन्होंने सैंणा की दोखली और गाफर गांव के बीच अपनी प्राण प्रतिष्ठा एक पत्थर में की। बंस्यूल गांव बहुत बाद में बसा। पहले वहां सैंणा की दोखली नामक गांव था। कुछ कारणों के चलते सैंणा की दोखली से लोगों ने वहां से पलायन किया और सैंणा की दोखली से नीचे एक नया गांव बसाया, जिसका नाम बंस्यूल रखा दिया गया।
जातक कथाओं के अनुसार, भगवान नागराज जी ने सैंणा की दोखली और गाफर गांव के बीच एक गाय को घास चरते हुए देखा। उस समय भगवान नागराज जी ने उस गाय का दूध पिया। वह गाय बंस्यूल गांव के (राजपूत बयाड़ा परिवार) की थी। तभी से बयाड़ा परिवार को भगवान का “मायका” (मैती) माना जाता है, क्योंकि उनकी गाय ने भगवान को मां के रूप में दूध पिलाया था। जब वह गाय अपना भोजन करके घर वापस लौटी, तो उसने घर में दूध नहीं दिया। ऐसा कई दिनों तक चला। परिवार के लोगों को यह लगा कि कोई जंगल में उनकी गाय का दूध निकाल रहा है।
फिर एक दिन, वे लोग गाय के साथ जंगल में गए और देखा कि गाय एक पत्थर पर दूध की धार छोड़ रही है। जब उन्होंने देखा कि गाय पत्थर पर दूध की धार लगा रही है, तो उन्होंने क्रोध में आकर उस पत्थर पर प्रहार करना चाहा। जैसे ही उन्होंने किसी हथियार से प्रहार करने की कोशिश की, तभी भगवान नागराज साक्षात प्रकट हुए और बोले, “मैं नागराज हूं और मैं नौटियाल परिवार से आया हूं, जो गाफर में बनावा पट्टी से आए हैं।और बोले, “मुझे स्थान दीजिए।” इसके बाद ग्राम गाफर में भगवान नागराज जी को स्थापित किया गया। यह स्थान एक पयां के पेड़ के नीचे दिया गया और तभी से नौटियाल परिवार को (ससुराल माना जाता है) और नौटियाल परिवार भगवान नागराज जी के पुजारी भी हैं, पीढ़ी दर पीढ़ी से
कहा जाता है कि जब तक मंदिर नहीं बना था, गाफर गांव की गायों में से एक गाय रोजाना उस पयां के पेड़ के नीचे जाकर दूध की धार लगाती थी और वह गाय नौटियाल परिवार की थी, जो वहाँ रोज दूध की धार लगाया करती थी। गाफर में जितने भी परिवार हैं, वहां आज भी दूध को कभी गर्म नहीं करते है। यह प्राचीन प्रथा आज भी विद्यमान है। मान्यता है कि दूध गर्म करने पर उसमें कीड़े पड़ जाते थे। आज भी गांव गाफर के निवासी दूध गर्म नहीं करते हैं। वह वही पत्थर था, जो जंगल से गाफर लाया गया था। वह पत्थर, जिस पर गाय दूध की धार लगाती थी, भगवान नागराज जी का प्रतीक माना गया। ऐसा भी कहा जाता है कि गाफर गांव में एक शेर भी हुआ करता था, जिसे कई बार मंदिर के आसपास देखा गया। समय के साथ वह शेर वहां से गायब हो गया।
मंदिर के निर्माण के पहले चरण में पयां के पेड़ के नीचे भगवान नागराज जी का मंदिर बनाया गया। जब मंदिर निर्माण हो रहा था, तब भगवान नागराज जी का शिवलिंग, गाफर गांव के वर्तमान पुजारी श्री जीतमणि नौटियाल के घर में रखा गया था उनके घर में आज भी उस छोटे से मंदिर का प्रमाण मिलता है और उस मंदिर में आज तक रोज़ दिया जलाया जाता है और कई बार भगवान नागराज जी उस घर में भी देखे गए हैं।
जब मंदिर का पहला चरण बनकर तैयार हुआ, तो शिवलिंग को घर से मंदिर में स्थानांतरित किया गया। आज वह शिवलिंग उसी स्थान पर भगवान नागराज जी के रूप में प्रतिष्ठित है। बाद में दिव्य और भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। उस शिवलिंग, जिस पर गाय दूध की धार लगाती थी, को मंदिर में प्रमुख स्थान पर रखा गया और भगवान नागराज जी के रूप में पूजित किया जाते हैं जातक कथाओं के आधार पर कहा जाता है कि कुछ लोग जौनपुर क्षेत्र में रिश्तेदारी में गए थे। जब वे वहां से अपने गांव की ओर लौट रहे थे, तो रास्ते में उन्हें तांम्रपत्र का एक टुकड़ा मिला। वे लोग उस तांम्रपत्र का टुकड़ा अपने साथ घर ले आए।
फिर जब वे उस ताम्बे के टुकड़े का आपस में बंटवारा करने लगे, तो उनकी आपस में सहमति नहीं बनी और उनका झगड़ा होने लगा। इसके बाद उन लोगों ने आपस में विचार-विमर्श किया और यह निश्चय किया कि झगड़ा करने के बजाय क्यों न इस तांम्रपत्र को गाफर भगवान नागराज जी के चरणों में समर्पित कर दिया जाए।
उन लोगों ने यह बुद्धिमानीपूर्ण कदम उठाया और तांम्रपत्र को भगवान गाफर नागराज जी को समर्पित कर दिया। जिस प्रकार से उन लोगों में समूह चर्चा चली, तो ऐसा प्रतीत होता है कि वे केवल तीन लोग नहीं थे, बल्कि कम से कम 8 से 10 लोग रहे होंगे,और वे तीन गांव – बंस्युल, कस्तल और लवाणी के निवासी थे।उनकी इतनी सुंदर नीयत के कारण उन्होंने तांम्रपत्र को भगवान को समर्पित कर दिया। इसके बाद उस तांम्रपत्र से एक ढोल बनाया गया। आज जो ढोल मौजूद है, वह उसी समय का बना हुआ है। तब से इस ढोल पर किसी एक गांव का व्यक्तिगत अधिकार नहीं है और न ही कोई इस ढोल पर दावा कर सकता है। यह ढोल तीनों गांव और गाफर भगवान नागराज जी का ही ढोल माना जाता है।हम उन लोगों को कोटि-कोटि नमन करते हैं, जिन्होंने इतना सुंदर विचार किया और भगवान को समर्पण का यह महान कार्य किया
आइए, सिद्धपीठ गाफर नागराज जी के बारे में जानते हैं।